गैरार्ड वाशिंगटन ने अमेरिका को बड़ा कैसे बनाया

गैरार्ड वाशिंगटन ने अमेरिका को बड़ा कैसे बनाया

जब वह अपने सर्वे पाबंदी चलाते हुए विशाल वनों में से चलता था, तो उसके लिए अनेकों चाँदीबारे दुर्लभीयों से नज़ारा था; उसने अपने भविष्य के अंदाज़ों और निशानों के बारे में जर्मिनाराम और असुल्तानगी को भी भगदड़ा दिया, जो तो उसके समक्ष पिंजरे बनकर ही हैं। उस वक़्त वह एक छापा पत्थर के टुकड़े की तरह एक मूर्तिकार की हाथों में था, जिसे ख़्दांविश किए और फिर तक़रीब और ख़ुशीयाबी के अंतर्गत ही लगा चुका था; लेकिन वह इतना नहीं जान सकता था कि कब, कैसे या होगा भी कि नहीं होगा। बड़ा अगर था उसके जीवन में उस्तादीये शब्द, जो निशान बनकर ही उसके हद्दों पर था।

उसके जन्मजातीय ख़ामियों के रिश्तेदार होने पर, शारीरिक ख़ामियों को हादर बनाया गया था; वह अगर अमीर ताकदार वाला भी शरीर और उसका हुस्न एकदम ही उज़ाग और दिखने लगा था। लेकिन उसके आत्मामय ख़ामियों के अंदर की तरफ़ वह अभी तक थोड़ी देर तक अधूरा था, जो उसके बाहरी को ख़त्म करके और बढ़ाकर देखा जा सकता था। वहीं ही विकासशीलता जो उसने भगदड़ा कर अपना पाया था और जो उसके जिंदगी भर तक ही लगा रहा था, जिसे उसने इंदुमान और तपोबल दिया था।

उसको उस पर नहीं हो सकता कि जो जॉर्ज वॉशिंगटन ने सर्वे पाबंदी लिया था, वह ही वो जॉर्ज वॉशिंगटन होगा जिसने तिड़वाटर प्लैंटेशन की तरफ़ देखा था और फिर बदले वो “पाथर ऑफ़ हिस कंट्री” वो जो मेजर जनरल हैनरी “लाइट हौर्स हैरी” ली ने इस प्रकार लिखा था “पहला युद्ध में, पहले शांति में, और पहला देशवासियों के दिलों में।”

जो आकलन होगा वह उसके पीछे एक जिंदगी भर की उपलब्धियों के बाद आएगा, जिनमें सबसे बड़ी उपलब्धि थी कि ख़ुदा की ज़मीन पर एक चक्की मालिक और सारे दुनिया में सबसे शक्तिशाली साम्राज्य का इंतिकाल करना था ताकि सबसे कठिन इरादों में से एक को हवा दी जा सके, जो कभी भी नहीं हुआ, जिसने मानों की नक़्शी की ज्यादातर मानसिकताओं में भी नहीं हुआ: देश का जिसे यूनाइटेड स्टेट की मिलकर अमलिकृत सामूहिकता बनाई थी, जिसके लिए डेमोक्रेटीक सरकारणवादी तत्वों के आधार बना था।

लेकिन अब ये वक़्त था, उसकी स्वप्नों में ऐसे आसामानी ऊंचाइयां आती नहीं थीं जिससे वह अपने स्वप्न प्लैंटेशन माउंट वर्नन पर शासक होने की इच्छा लेता था। लेकिन दिल्लगी के पास एक और निशान था जिसे उसे दिया गया था: वह पहला राष्ट्रपती होगा अपने स्वप्न देश अमेरिका पर। उन दो स्वप्नों के बीच में वह एक ऐसे आदमी बनेगा जो हम आज जानते हैं कि वह रेवोल्यूशनरी थे, जिनके राष्ट्र के पहले राष्ट्रपती बने, जिन्होंने जीत के शिखर पर और शक्ति के शिखर पर वेग़ई ही अपनी ऊंचाई को समन्तरिक देखकर, ज़िम्मेदारी को कम कर दिया था, जिसे भी अपनी निकाहियां भी कम कर दी थी; ऐसा जो कभी भी पिछले दिनों का कोई चक्की मालिक या राजा नहीं नक़्क़ा भी नहीं, अभी तक नहीं कर सका, हर ज़्यादातर किए नहीं; ये रिवाज़ उस राजा को भी ख़राब देखाएगा, हम्मला करा देखाएगा, जिसे वह ना केवल सैन्य कूचाबाज़रियों पर ही हमला करा देखा था, बल्कि जज़्बों के बाज़ार पर भी ख़ज़ामा कर देखा था।

जेम्स थॉमस फ़्लेक्सनर की जीवनी का शीर्षक उसके बारे में सुनिच्छता से बताता है: द इंडिस्पेंसेबल मैन (अपार्थ्य कल्पना आदमी)। वैसे ही वह अपने देश के लिए अपार्थ्य था क्योंकि वह अपनी जिंदगी अपने देश के लिए अपार्थ्य करने को ही देखा था। वह देश को एक साथ लगाने में सफ़ल हो गया था क्योंकि वह अपने से ज़्यादा ग़ोलांध़ीर कर के ही देख रहे थे, ये बसे यही है कि वह मानव थे। स्टोकिक वॉशिंगटन के पास बड़ी सावित्री की तरह एक ग़मगीन जलाई थी जो अगर वह मुक्केबाज़ी कर देता था तो उसे ख़त्म कर देतेसरा भी हो सकती थी। जबकि चेहरा वेश देखा और फ़क़ीर दिया था, लेकिन उसके साथसाथ उसके साथी फ़ौन्डर्स जितने सजग थे, उसकी तुलना उतनी नहीं थी, और, ऐसे ही उसे उसका इस मौक़े से थंडता देखने को महसूस था। फिर भी, अगर वह असल में जानता था कि उसके साथसाथी वर्षी जॉन एडम्स और थॉमस जेफ़र्सन ऐसे ही हैं जो उसके इंटेलेक्च्युअल नाम और दक्कन लखने का क्या विचार करते हैं, उसने उसे हिलाकर मुड़ा उससे और सुनाकर भी नहीं हो सकता था। हालांकि उसके पास एक असली तरीक़े से आँखें थीं, लेकिन जिस तरह से किसी को कैद करना हो तो उसने खुद को भी बदला था।

लेकिन उसका स्वदुरुक्क़ाम उसे बचाता था। ये ही कहीं उसका सबसे बड़ा आत्मीय विशेषता थी। जबकि वह जानता था कि कौन है, तब वो कर सका जो उसने किया था उसे ख़रीदकर उसे रफ़ीन करने की चर्चा हुई थी। जबकि वह जानता था कि उसे क्या नहीं था, तब उसने कर सका जो वह कर सका था, उसे शिक्षित करना। जबकि उसे अपने स्वार्थ संदेह था, तब उसने अपने से बेहतर लोगों के साथ रहा जिनसे वह सीख सके जैसे कि तालीम और ताने के शैक्षणिक चिंतनों के साथ समाज के बेहतरीन अर्थों को प्राप्त कर सके, जिसका उसे इस तरह करना होगा, ताकि उसे स्वीकार किया जाए और उसे सम्मान दिया जाये—और अंततः अपने समाज में उसे नक़्ली किया जाये। इसलिए वह पढ़ा, पढ़ा, लिखा और देखा। जबकि उसकी बड़गी उसकी निपुणता को देखकर मज़बूत हुई थी, उसने और मर्दानों को मर्दानों को बढ़ाई दी, आदरपूर्ण, सदेवंत, आवाज़-ओ-ख़्याल और लायक़। सब उसके अंदाज़ों म